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चुनावी मैदान में ‘फ्री की रेवड़ियां’: दिल्ली की राजनीति का नया जायका

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चुनावी मैदान में ‘फ्री की रेवड़ियां’: दिल्ली की राजनीति का नया जायका

दिल्ली की सर्द हवाओं में इस बार चुनावी गर्मी कुछ अलग है। जनता के लिए वादों की रेवड़ियां ऐसे बंट रही हैं, जैसे गली के मोड़ पर मुफ्त कचोरी समोसे बांटे जा रहे हों। बीजेपी, आम आदमी पार्टी, और कांग्रेस ने अपने-अपने "संकल्प पत्र", "गारंटी कार्ड" और "घोषणा पत्र" के नाम पर मुफ्तखोरी का ऐसा तड़का लगाया है कि लगता है, अब दिल्लीवालों को अपने घर  का बजट बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। सब कुछ फ्री मिलेगा | साथ ही गारंटी पर गारंटी भी मिलेगी वो भी ऐसी की बड़ी से बड़ी कंपनी भी क्या दे पाएं  | दरअसल समझने वाली बात ये है कि पूरा मसला ही बाजारवाद में तब्दील हो गया है | फ्री फ्री फ्री  आइए कुर्सी  दीजिए और फ्री के प्रोडक्ट्स का मजा लीजिए | 

रेवड़ी की राजनीति का नया दौर

जहां आम आदमी पार्टी कहती है, "बिजली, पानी, बस यात्रा और मोहल्ला क्लीनिक फ्री में मिलेंगे," वहीं भाजपा का जवाब है, "होली-दीवाली पर मुफ्त सिलेंडर और महिलाओं को 2500 रुपये हर महीने देंगे।" कांग्रेस भी कहां पीछे रहने वाली थी। उन्होंने कहा, "प्यारी दीदी योजना के तहत महिलाओं को 2500 रुपये देंगे, साथ में राशन की किट, मुफ्त इलाज और गैस सिलेंडर भी फ्री।"

अब जनता के मन में सवाल उठ रहा है कि ये चुनाव है या 'मुफ्त सेवा मेला'? ऐसा लग रहा है कि हर पार्टी अपने घोषणापत्र को एक शॉपिंग कैटलॉग समझ रही है, जिसमें हर चीज पर "फ्री" का बड़ा-बड़ा टैग लगा है। यहाँ तो वही बात हो रही है कि मेरी रेवड़ी उसकी रेवड़ी से फीकी ना रह जाए ये तो भेड़ चाल हो गई वो दो हजार देगा तो मैं पच्चीस  सौ दूंगा अगर वो गैस ,बिजली, बस फ्री देगा तो मैं कैसे पीछे रह सकता हूँ   तू डाल डाल  मैं  पात पात  | चाहे जो हो जाए, चाहे पूरी दिल्ली ही दांव पर क्यों ना लगाना पड़  जाए कुर्सी अपुन के पास ही आना मांगता है भाई 

दिल्ली की जनता: ग्राहक या मतदाता?

दिल्ली की जनता इस रेवड़ी राजनीति में अब ग्राहक बनकर रह गई है। हर पार्टी अपने "ऑफर" के साथ यह दावा कर रही है कि उनका "फ्री पैकेज" सबसे बेहतर है।

  • आप कहती है: "हमने फ्री सेवाओं की शुरुआत की थी।"

  • भाजपा बोलती है: "हम मुफ्त सिलेंडर देंगे, जो अब तक किसी ने नहीं सोचा।"

  • कांग्रेस दावा करती है: "हमारी गारंटी कर्नाटक और हिमाचल में भी चली, अब दिल्ली में भी चलेगी।"

 

जनता अब सोच रही है कि वोट डालने के बाद यह फ्री सेवाओं का "फेस्टिव ऑफर" कब तक चलेगा? इन मुफ्त के ऑफर  से मतदाता कुछ कंफ्यूज भी है कि किस कंपनी ( राजनीतिक  दल) का संकल्प ,घोषणा,  गारंटी  पक्की है कौन सी कंपनी ज्यादा रिलाएबल  है किसका ऑफर स्वीकार किया जाए किसका नहीं 

 

दिल्ली: मुफ्तखोरी का मॉडल या असली विकास?

दिलचस्प बात यह है कि हर पार्टी फ्री सेवाओं के वादे कर रही है, लेकिन यह नहीं बता रही कि इस खर्च का हिसाब कहां से आएगा।

  • स्वास्थ्य, शिक्षा, और सुरक्षा जैसे असली मुद्दे इन वादों के शोर में कहीं खो गए हैं।

  • क्या यह मुफ्त सेवाएं आर्थिक विकास के बजाय वोटों का लॉलीपॉप बनकर रह जाएंगी?

दिल्ली के मतदाताओं के लिए यह चुनाव ऐसा हो गया है, जैसे किसी ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट पर "सबसे सस्ता ऑफर" तलाशना। हर पार्टी के नेता मानो सेल्समैन बन गए हैं, जो जनता को मुफ्त रेवड़ी की पोटली थमाकर वोट खरीदना चाहते हैं।

"गैस सिलेंडर फ्री, बिजली फ्री, बस यात्रा फ्री, और अब राशन भी फ्री," लेकिन कोई यह नहीं पूछ रहा कि दिल्ली की सड़कों पर ट्रैफिक कब फ्री होगा?
कोई यह वादा नहीं कर रहा कि दिल्ली की हवा में प्रदूषण कब फ्री होगा?
कोई यह भी नहीं बता रहा कि दिल्ली के स्कूलों और अस्पतालों की हालत कब ठीक होगी?

कुछ लोग फ्री के विरुद्ध भी है लेकिन आप जरा इसका दूसरा पहलू भी देखिए ये नेताओं की दूरदर्शी सोच को भी उजागर  करता है  | इससे रोजगार की एक बड़ी समस्या हल होती है | वो कैसे, वो  यूँ कि जब  सब कुछ फ्री ही मिलना है तो एक बड़े तबके को तो रोजगार की जरूरत ही क्या है सरकारी मकान  में रहो, फ्री की बिजली, फ्री का राशन , फ्री गैस,  फ्री बस |  बस तो फिर क्या बचा,  सब कुछ फ्री पा पा कर एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब आदमी की काम करने की आदत ही छूट जाएगी फिर क्या लगता है कि रोजगार की जरूरत रह जाती है ?  और जो  इसमें से  छूट गया उसकी भरपाई के  लिए  केंद्र की भी अपनी योजनाएं  हैं ही | ऐसी दूरदर्शी सोच है ना कमाल 

 रेवड़ियां बांटने से बदलाव नहीं होगा

चुनावी वादों की इस रेवड़ी संस्कृति से जनता को सतर्क रहना होगा। असली मुद्दे विकास, रोजगार और भ्रष्टाचार खत्म करना है। दिल्ली को रेवड़ी नहीं, दूरदर्शी नेतृत्व की जरूरत है। वरना, यह रेवड़ी राजनीति एक दिन पूरे देश को "मुफ्तखोरी के गड्ढे" में गिरा देगी।तो, इस बार  दिल्ली वासियों को वोट  जरूर देना चाहिए और सोच-समझकर देना चाहिए । कहीं ऐसा न हो कि "फ्री ऑफर" के चक्कर में असली विकास ही छूट जाए और  फ्री की पोटली का आर्थिक बोझ उठाते उठाते दिल्ली का दम ही निकल जाए | 

Article By :
Abhilash Shukla

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Editor

Abhilash Shukla

A Electronic and print media veteran having more than two decades of experience in working for various media houses and ensuring that the quality of the news items are maintained.

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